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रोजे का शारीरिक एवं आध्यात्मिक दोनों तरह से है लाभ

टीएचटी रिपोर्टर पटना । इमारत शरिया, फुलवारीशरीफ के मौलाना मोहम्मद आदिल फरीदी कासमी ने रोजे के फजीलत बयान करते हुये कहा कि रमजान वो महीना है जो हर मुसलमान के लिए बहुत मायने रखता है. ये इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना होता है. इस्लाम में रमजान सबसे पवित्र महीनों में से एक माना जाता है. माना जाता है कि रमजान के महीने में जन्नत यानी स्वर्ग के दरवाजें खुल जाते हैं और इस पवित्र महीने में हर दुआ पूरी होती है. रमजान की सबसे बड़ी इबादत रोजा रखना होता है। रमजान का रोज़ा हर  मुस्लिम पुरुष और महिला पर अनिवार्य है, और इसका सवाब  और लाभ शारीरिक एवं आध्यात्मिक दोनों तरह से है, इसलिए रोज़ा को बेहतर ढंग से अदा करना और सुन्नत के अनुसार रोज़ा रखना  आवश्यक है। रमजान के दिन में कम से कम दो पारा , कुरान का पाठ करें, उर्दू तर्जुमे के साथ नियमित तिलावत करें।

एक प्रति दिन पाँच वक़्त की नमाज  रोजाना मस्जिद में जमात के साथ पढे, और महिलाओं के घरों में नमाज़ पढ़ना चाहिए । रोजाना तरावीह की नमाज़ पढे और उस मे एक कुरान मुकम्मल करे । 

कोई भी गलत चीज, अश्लील  वीडियो आदि न देखें। गाने, संगीत और अशलील चीज़ें सुनने से  अपने कानों को बचाएं। जीभ से गंदी और अश्लील बातें न बोलें, झूठ न बोलें, किसी को गाली न दें अपनी ज़ुबान से ऐसी कोई बात मत निकालो जो अल्लाह और उसके रसूल को पसंद न हो, किसी के साथ  गलत व्यवहार  न करना या कोई गुनाह का काम  न करना। निषिद्ध और संदिग्ध सामान और चीजें प्रयोग न करें।

अल्लाह ताला का वादा उस व्यक्ति के लिए मगफिरत एवं नर्क से आज़ादी का है जिस ने रमजान के हक को अदा किया । रमज़ान का हक केवल भूका और प्यासा रहना नहीं है  बल्कि रमज़ान का हक यह है कि हम अपने आप को गुनाहों से बचाएं इसी लिए नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि बदन के हर हिस्से का रोज़ा होता है हाथ का रोज़ा यह है कि उस को गुनाह के काम से बचाया जाए अल्लाह के बंदों को हाथ के द्वारा तकलीफ न दी जाए । पैर का रोज़ा यह है कि उस से बुरे स्थान पर न जाया जाए । आँख का रोज़ा यह है कि उस से कोई गुनाह की वस्तु को न देखा जाए । ज़बान का रोज़ा यह है कि उस से कोई बुरी बात , झूठ , गाली गलौज न बोला जाए न अपनी बात से किसी अल्लाह के बंदे को कष्ट दिया जाए और न किसी का दिल दुखाया जाए । इसी प्रकार बदन के हर हिस्से को गुनाह से बचना रोज़े का हक अदा करना है  अगर ऐसा किया है तो हम ने रोज़े का हक अदा किया। 

रोज़े का एक उद्देश्य यह भी है कि हमें संसार में रहने वाले लाखों करोड़ों लोगों की भूख एवं प्यास का एहसास हो जिन को दो वक्त का खाना एवं पीने को प्रयाप्त पानी हासिल नहीं है। इस लिए अपने खाने में से भूखों को खाना खिलाने , प्यासे को पानी पिलाने और जिन के पास पहनने को कुछ नहीं है उन के तन को ढंकने का प्रबंध कीजिए। अपनी ज़कात और फ़ितरे का सही इस्तेमाल कीजिए और उस को सही जगह पर पहुंचाइए जिस से किसी ज़रूरत मंद की आँखों खुशी आ जाए यकीन कीजिए अगर हम ने ऐसा करना रोज़े से सीखा है तभी हमारा रोज़ा कारगर है  वरना सिर्फ भूखे और प्यासे रहने से फर्ज़ तो अदा हो जाएगा लेकिन रोज़े का उद्देष्य पूरा नहीं होगा इस लिए इस  महीने में जरूरतमंदों की मदद करें। गरीबों को कपड़े पहनाएं । भूखे लोगों को भोजन कराएं । महिलाओं, विधवाओं, गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करें। अपनी स्थिति के अनुसार कुछ रोजेदारों को  रोजाना इफ्तार कराएं । रोजेदारों को  इफ्तार कराने का बहुत सवाब  हदीसों में बयान किया  गया है। बहुत से ऐसे लोग हैं जो जरूरतमंद हैं, लेकिन शर्म की वजह से, वे किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते हैं, ऐसे लोगों की खास तौर से  मदद करनी चाहिए, कुरान और हदीस में ऐसे लोगों की मदद करने का  बहुत बड़ा पुण्य  बताया गया है। अल्लाह तआला हम सब को रमज़ान की सही कदर करने की तौफीक दे आमीन।