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रोजे का असल मकसद तकवे को पैदा करना

टीएचटी रिपोर्टर पटना । पाक मुकद्दस का महीना रमजान शुरू हो गया। मंगलवार को रमजान के चांद पूरे देश में देखा गया। इसके बाद हर लोग रमजान का एक दूसरे को मुबारकबाद देते रहे। कोरोना के बढ़ते संक्रमण को लेकर सरकार ने सभी धार्मिक स्थल को बंद करने का निर्देश दिया। हालांकि किरोना संक्रमण पर आस्था भारी रहा। हर लोग अपने अपने घरों पर ही तरावीह का नमाज शुरू कर दिए।  रहमतों की बारिश का पाक मुकद्दस माहे रमजान का पहला रोजा मुसलमान भाइयों ने बुधवार से रखना शुरू कर दिया है। 


कुरान-ए-पाक में अल्लाह तआला ने इरशाद फरमाया ऐ ईमान वालों तुम पर रोजे फर्ज किये गये जैसा कि तुमसे पहले लोगों पर रोजे फर्ज किए गये थे ताकि तुम परहेजगार बनो। रोजे का असल मकसद तकवे को पैदा करना है। तकवे कि माने अल्लाह से डरना होता है। यानी इंसान एक खास वक्त से लेकर एक खास वक्त तक खाने-पीने से रुका रहता है। तन्हाई में भी, जहां उसे कोई देखने वाला न हो, कुछ नहीं खाता पीता। क्योंकि उसका ईमान है कि कोई देखे न देखे मगर अल्लाह उसे देख रहा है। यही डर रोजादार को रमजान और गैर-रमजान में बहुत से गुनाहों जैसे झूठ बोलना, बुराई करना, गलत निगाह डालना, हक मारना, रिश्वत लेना, जुआ खेलना, शराब पीना आदि से रोकता है।